Dr. Bhimrao Ambedkar (संविधान निर्माण) ka प्रारंभिक जीवन




बाबासाहेब डॉ॰ भीमराव रामजी आंबेडकर जी का जन्म ब्रिटिशों द्वारा केन्द्रीय प्रांत (अब मध्य प्रदेश में) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी महू में हुआ था।[7] वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की १४ वीं व अंतिम संतान थे।[8] उनका परिवार मराठी था और वो आंबडवे गांव जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, से संबंधित था। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे और यहां काम करते हुये वो सूभेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होने अपने बच्चों को स्कूल में पढने और कड़ी मेहनत करने के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया।

कबीर पंथ से संबंधित इस परिवार में, रामजी सकपाल, अपने बच्चों को हिंदू ग्रंथों को पढ़ने के लिए, विशेष रूप से महाभारत और रामायण प्रोत्साहित किया करते थे। हालांकी बाबासाहेब कभी भी राम, कृष्ण, द्रोण से प्रभावित नहीं हुए.ौ वे गतम बुद्ध शिक्षाओं ने प्रभावित किया, जब उन्होंने पहली बार बुद्ध चरित्र पढा। रामजी बाबा ने सेना में अपनी हैसियत का उपयोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से शिक्षा दिलाने मे किया, क्योंकि अपनी जाति के कारण उन्हें इसके लिये सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चों को विद्यालय में अलग या बाहर बिठाया जाता था और अध्यापकों द्वारा न तो ध्यान ही दिया जाता था, न ही कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने प‍र कोई ऊँची जाति का व्यक्ति ऊँचाई से पानी उनके हाथों पर पानी डालता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के पात्र को स्पर्श करने की अनुमति थी। लोगों के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक भीमराव आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था। १८९४ मे रामजी सकपाल सेवानिवृत्त हो जाने के बाद सब परिवार सतारा चले गए और इसके दो साल बाद, बाबासाहेब की मां की मृत्यु हो गई। बच्चों की देखभाल उनकी बुआ मीराबाई ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और तीन बेटियाँ मंजुला, गंगा और तुलसा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाये। अपने भाइयों और बहनों मे केवल बाबासाहेब ही स्कूल की परीक्षा में सबसे अधिक सफल हुए और इसके बाद बड़े विश्वविद्यालय जाने में सफल हुये। रामजी सकपाल ने स्कूल में अपने बेटे भीमराव का उपनाम ‘सकपाल' की बजायं ‘आंबडवेकर' लिखवाया, क्योंकी कोकण प्रांत में लोग अपना उपनाम गांव के नाम से लगा देते थे, इसलिए बाबासाहेब का मूल अंबाडवे गांव से अंबावडेकर उपनाम स्कूल में दर्ज किया। बाद में एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर अपना सरल ‘आंबेडकर’ उपनाम जोड़ दिया। आज आंबेडकर नाम संपूर्ण विश्व में अमर हो चूकाँ है।

रामजी आंबेडकर ने सन १८९८ मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ मुंबई (तब बंबई) चले आये। यहाँ डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने।[9] पढा़ई में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, छात्र भीमराव आंबेडकर लगातार अपने विरुद्ध हो रहे इस अलगाव और, भेदभाव से व्यथित रहे। सन १९०७ में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद भीमराव आंबेडकर ने मुंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये। मैट्रिक परिक्षा पास की उनकी इस बडी सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी, क्योंकि तब के समय में मैट्रिक परिक्षा पास होना बहूत बडी थी और अछूत का मैट्रिक परिक्षा पास होना तो आश्चर्यजनक एवं बहूत महत्त्वपूर्ण बडी बात थी।इसलिए मैट्रिक परिक्षा पास होने पर उनका एक सार्वजनिक समारोह में सम्मान किया गया इसी समारोह में उनके एक शिक्षक कृष्णाजी अर्जुन केलूसकर ने उन्हें अपनी लिखी हुई पुस्तक गौतम बुद्ध की जीवनी भेंट की, श्री केलूसकर, एक मराठा जाति के विद्वान थे। इस बुद्ध चरित्र को पढकर पहिली बार बाबासाहेब बुद्ध की शिक्षाओं से ज्ञान होकर बुद्ध से बहूत प्रभावी हुए। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर की सगाई एक साल पहले हिंदू रीति के अनुसार दापोली की, एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी।[9] सन १९०८ में, उन्होंने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्ययन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया। १९१२ में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी रमाबाई ने अपने पहले बेटे यशवंत को इसी वर्ष १२-१२-१९१२ में जन्म दिया। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर अपने परिवार के साथ बड़ौदा चले आये पर जल्द ही उन्हें अपने पिता रामजी आंबेडकर की बीमारी के चलते मुंबई वापस लौटना पडा़, जिनकी मृत्यु २ फरवरी १९१३ को हो गयी।

Comments