Dr. Bhimrao Ambedkar || सामाजिक एवं धार्मिक योगदान

सामाजिक एवं धार्मिक योगदान


          मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नासिक सत्याग्रह (वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन चलाये। बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।


कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों तथा शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्था. 1924) के जरिये अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम बनाया। सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्‍स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की।

बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्‍थापित कर अपने अंतिम ग्रंथ ''द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा'' के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया। जात पांत तोडक मंडल (वर्ष 1937) लाहौर, के अधिवेशन के लिये तैयार अपने अभिभाषण को जातिभेद निर्मूलन नामक उनके ग्रंथ ने भारतीय समाज को धर्मग्रंथों में व्याप्त मिथ्या, अंधविश्वास एवं अंधश्रद्धा से मुक्ति दिलाने का कार्य किया।

हिन्दू विधेयक संहिता के जरिए महिलाओं को तलाक, संपत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान कर उसके कार्यान्वयन के लिए वह जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे।

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